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  जिंदगी एक... सपने हज़ार है..., आंखो में नमि ओर चेहरे पर हंसी उधार है। ख्वाइशों का पर्दा हटाकर, अब आंखो में जुनून जगाना है, जिंदगी से शिकवा नहीं , जिंदगी से जीतना है

तो कहना !

हसाना तो सभी को आता है.. तुम हसा हसा कर रुला दो तो कहना ! पीठ पीछे बुराई करना तो सभी को आता है.. तुम सामने आके हकीक़त कह सको तो कहना ! मीठी मीठी वाणी कह तो सभी देते है.. तुम्हारा " दिल " सच्चा हो तो कहना ! दिल रखना तो सभी को आता है.. तुम दिल की दो भाषा समझ पाओ तो कहना ! सपने देखना चाहे तो सभी देख सकते है.. गर तुम उसे पूरा कर सको तो कहना ! ख़्वाब तो सभी मन में सज़ा लेते है.. तुम उस ख़्वाब को हकीक़त में बदल सको तो कहना ! यहां इन्सान तो सब ही है.. तुम अपनी इंसानियत से इन्सान बन पाओ तो कहना ! तुम अपनी ताकत का दुरुपयोग करने के बजाए, गर तुम उसी ताक़त से किसी निर्बल को सहारा दे सको तो कहना ! दूसरो से खुद की तुलना करना से अच्छा, गर तुम खुदसे लड़ पाओ तो कहना ! दूसरो से खुद की तारीफ सुनने से बजाए, तुम उस तारीफ के काबिल बन सको तो कहना ! और क्या सही क्या ग़लत ये गैरों से पूछने से अच्छा, आइने में ज़रा खुदको हिम्मत से सामने रख सको तो कहना !                                                                 -PRAGATI SAHU 

हर रात के बाद सवेरा होता है...

 जरूरी नहीं हर हस्ते चेहरे पर  उदासी के बादल न छाए हो जिसने अपनी चोट मुस्कुरुहटो से छुपाई हो, और जिसने मुस्कुराना ही सीख लिया हो  तो सामझलेना उसने लड़ना भी सीखा होगा... जो गिर गया है,उसे खुद उठना भी होगा, जो जिंदगी से अपना ही गला घोट रहा हो " हर रात के बाद सवेरा होता है " ये उसे  समझना ही होगा    जिसने पत्थरों के भीड़ में हीरे तराशे होंगे, बेशक उसने कई कष्ट भी उठाए होंगे। हर अंधेरे में जिसने चमकता ' दिया ' ढूंढा होगा,और  हर काटो को सहने के बाद जिसने महकता गुलाब ढूंढा होगा  तो क्यों न मान लिया जाए कि हर रात के बाद सवेरा होता है  क्योंकि कामयाबी की डोर तभी आसमानों को चूमती है..., जब उसने अंधेरों में चमकता जुगनू देखा होगा.....                                                 -Pragati sahu

बेटी- पापा की परी

मां के कोख़ में पली एक नन्हीं सी परी, दुनियां में आयी तो पिता के गोद  आयी परी, माथे को चूमा तो अमर हो गई परी, जब पिता का साया पड़ा एक नन्हीं सी परी। पिता के लिए जब दुनिया बन गई परी, भूल सारे परेशानियों को जब मिटा दी परी, थीं चिंता पिता को जब बड़ी होगी परी, जब पिता का साया पड़ा एक नन्हीं सी परी। सुना जब पिता ने आवाज़ परी की, तब परेशानिया भी स्वर्ग बन गई, आशा थी पिता को,की सफल होगी परी, जब पिता का साया पड़ा एक नन्ही सी परी। रोती जब परी पिता की गोद में, तब सीखते पिता हसना परी को, रहती तो परी स्वर्ग में पर स्वर्ग बने पिताजी, एक छोटी सी मुस्कान देख तो दुनियां बन गई परी तब जाके कहलाई बेटी "पापा की परी" एक उम्मीद थीं पिता को अपनी नन्ही सी परी, तब परी ने वादा किया अपने पिता से कि इस  उम्मीद को कायम करेगी ये परी जब पिता का साया पड़ा एक नन्ही सी परी। थीं चिंता पिता को जब दूर है जाएगी परी, जो जान से भी प्यारी थी वो किसी और की हो जाएगी परी, जब आंसू छलकेंगे पिता के आंखों से तो देख पाएगी परी, जब पिता का साया उठ जाएगा एक नन्ही सी परी। याद करेगी वो बचपन को बताया एक साथ, जब परेशानियों को भूल

आखिर मैं भी किसी की बेटी हूं

 सिर का ताज हूं मैं पैर की जूती नहीं। चेहरे कि मुस्कुराहट हूं मैं किसी का दुख नहीं। घर की लक्ष्मी हूं मैं सिर का बोझ नहीं। देश का गुरूर हूं मैं कलंक नहीं। खुद की ताकत हूं मैं कमज़ोर नहीं। आखिर मैं भी किसी की बेटी हूं  पराई नहीं।                                        -pragati sahu